बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्र
प्रश्न- भारत में मजदूर आन्दोलन के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर -
भारत प्राचीन काल से ही प्रौद्योगिक देश था और यूरोपियन लोग भारत से तैयार किया हुआ माल ही लेने आये थे। परन्तु यहाँ कुटीर उद्योग ही थे। 18वीं शताब्दी के अन्तिम चरणों में इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति आई और इसके पश्चात् भारतीय कुटीर उद्योग-धन्धे लगभग लुप्त प्रायः हो गये थे। और भारत केवल कच्चा माल उत्पादन करने वाला देश ही बन गया। परन्तु यह स्वाभाविक ही था कि यहाँ भी उद्योग-धन्धे आरम्भ हो। भारत में आधुनिक उद्योग-धन्धों की नींव 1850 और 1870 के बीच पड़ी। 1853 में लार्ड डलहौजी के रेलवे पत्र के पश्चात् भारतीय संचार साधनों में मशीनों का प्रयोग होने लगा। रेल लाइनों के बिछाने तथा इंजन के लिए कोयला निकालने मे सहस्त्रों श्रमिकों (मजदूरों) का प्रयोग होने लगा। यही भारतीय मजदूरों का आरम्भिक काल था। इसी रेलवे उद्योग से सम्बद्ध सहायक उद्योग का विकास आवश्यक था। इसी प्रकार कोयला खनन में सहस्त्र मजदूर काम करने लगे।
1854 में बम्बई में प्रथम कपड़ा मिल खुली उसी वर्ष कलकत्ता में प्रथम पटसन मिल लगी। इसी प्रकार चाम उद्योग में भी बहुत से श्रमिक काम करने लगे थे। कपड़ा उद्योग में 1886 में मजदूरों की संख्या 74000 थी जो 1905 में 195000 हो गई। इस प्रकार पटसन उद्योग में 1906 में 54, 962 मजदूर थे और कोयला खानों में 1904 में 75749 मजदूर लगे थे। भारतीय मजदूर वर्ग को कम मजदूरी, लम्बे कार्य के घन्टे, मिलों में अस्वस्थ वातावरण एवं बालकों से काम लेना तथा किन्हीं सुविध ओं का न होना इत्यादि के सभी पोषणों से निपटना था जोकि इंग्लैण्ड तथा शेष संसार में प्रायः सभी मजदूरों को आरम्भिक दिनों में सहने पड़े। इसके अतिरिक्त उन्हें शोषक औपनिवेशिक राज्य का दुर्व्यवहार भी सहना पड़ता था। परन्तु इस औपनिवेशिक परिस्थिति के कारण भारतीय मजदूरों में एक विशेषता आ गयी। भारतीय श्रमिक वर्ग को दो परस्पर विरोधी तत्वों साम्राज्यवादी राजनीतिक अवस्था तथा भारतीय और विदेशी पूंजीपतियों के शोषण का सामना करना पड़ता था। इस स्थिति के कारण यह आन्दोलन अनिवार्य रूप से राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलन का ही भाग बन गया अर्थात इस श्रमिक ने अपने आर्थिक कल्याण तथा राष्ट्रीय स्वतन्त्रता के लिए प्रयत्न किये।
व्यापार संघ की परिभाषा भूति अर्जित करने वाले लोगों का एक स्थाई संघ है जिसका उद्देश्य श्रमिकों के जीवन स्तर को बनाये रखना अथवा उसे सुधारने का प्रयत्न करना है। राजनीतिक उद्देश्यों और आदर्शों ने तथा इसकी अपनी बढ़ती हुई शक्ति ने इस आन्दोलन को बहुत अधिक प्रभावित किया है। भारतीय व्यापार संघ के दो मुख्य पक्ष मजदूरों का औद्योगिक सौदेबाजी और इसका सैद्धान्तिक अनुरूपण को बृहद राष्ट्रवादियों के साम्राज्यवाद के विरुद्ध लड़े जा रहे संघर्ष तथा अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संघठन के सन्दर्भ में देखना होगा
यह विधि की विडम्बना है कि भारतीय उद्योगों में काम करने वाले श्रमिकों की स्थिति को सुधारने के लिए सबसे पहले मांग भारत में मजदूरों से नहीं अपित लंकाशायर में कपड़ा कारखानों के मालिकों की ओर से आई। उन्हें डर था कि भारतीय कपड़ा उद्योग सस्ती मजदूरी के कारण उनका प्रतिद्वन्द्वी न बन जाए और उन्होंने एक आयोग की मांग की जो भारतीय कारखानों में श्रमिकों की परिस्थितियों का अध्ययन करे। पहला आयोग 1875 में नियुक्त हुआ और प्रथम कारखानों का कानून 1881 में पारित किया गया। इस कानून के अधीन 7 वर्ष से कम आयु के बच्चों को कारखानों में नहीं लगाया जा सकता था और 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए काम करने के घंटों को भी सीमित किया गया और यह भी कहा गया था खतरनाक मशीनों के चारों ओर बाड़ा लगाना चाहिए। इसी प्रकार दूसरा कारखानों का कानून 1891 में पारित हुआ और उनमें स्त्रियों के काम करने का समय 11 घंटे कर दिया गया जिसमें एक डेढ़ घंटे का मध्यावकाश निश्चित किया गया। बच्चों के काम करने के लिए न्यूनतम आयु 7 और 12 बजे से बढ़ाकर 9 और 14 कर दी गई। इसी प्रकार की परिस्थितियों में 1909 और 1911 के पटसन के कारखानों के लिए कानून बने। इसी प्रकार बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में भारतीय श्रमिकों में उभरती हुई राजनैतिक जागृति का भी प्रदर्शन किया। बम्बई के मजदूरों ने लोकमान्य तिलक को जेल में दण्ड दिए जाने के विरोध में छः दिन की राजनैतिक हड़ताल की। इस कार्य से प्रभावित होकर लेनिन को कहना पड़ा कि भारतीय प्रोलतारी पहले ही इतना परिपक्व अर्थात् सर्वहारा वर्ग हो गया कि वह वर्ग जागरुक और राजनैतिक जनसंघर्ष चला सकता है।
प्रथम विश्वयुद्ध के दिनों में वस्तुओं के मूल्य बढ़े, उद्योगपतियों को अभूतपूर्व लाभ हुआ परन्तु मजदूरों की मजदूरी न्यूनतम ही रही। औसत लाभांश जो पटसन के कारखानों ने 1915-24 तक द्विया वह 140 प्रतिशत था जबकि श्रमिक की औसत मजदूरी केवल 12 पौंड वार्षिक रही। इसी प्रकार सूती कपड़ा कारखानों ने औसत लाभांश 120 प्रतिशत दिया और ऊँचे से ऊँचा 365%। इसी बीच महात्मा गांधी का राष्ट्र के रंगमंच पर आगमन हुआ और उन्होंने अपने आन्दोलन के आधार को विस्तृत करने का प्रयत्न किया। उन्होंने मजदूरों को अपने आन्दोलन में सम्मिलित किया। यह अनुभव किया गया कि श्रमिकों को राष्ट्रीय व्यापार संघ में गठित किया जाए और उन्हें भी राष्ट्रीय आन्दोलन में लाया जाए। लगभग उसी समय रूस में अक्टूबर क्रान्ति हुई और अन्तर्राष्ट्रीय साम्यवादी संगठन का गठन हुआ। जिन्होंने संसार के श्रमिकों का आह्वान किया कि उद्योगपतियों को उनके उद्योगों से वंचित किया जाए और प्रोलतारी क्रान्ति लाओ। युद्ध के पश्चात् राष्ट्र संघ का और अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संघठन का गठन हुआ जिससे श्रमिकों की समस्या को अन्तर्राष्ट्रीय भूमिका मिल गई। व्यापार संघ का राष्ट्रीय स्तर पर गठन करने के लिए पहल राष्ट्रीय नेताओं ने की और 31 अक्टूबर 1920 को All India Trade Union Congress A. IT. U. C. का गठन किया गया। उस वर्ष के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रधान लाला लाजपतराय ही इस ट्रेड यूनियन कांग्रेस के प्रधान बनाए गए। 1927 तक अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस के साथ 57 मजदूर संघों का सम्बन्ध स्थापित हो गया था जिसकी सदस्य संख्या 150, 555 थी।
1920 के पश्चात् साम्यवादी आन्दोलन के उत्थान के पश्चात् व्यापार संघ आन्दोलन में कुछ क्रान्तिकारी और सैनिक भावना आ गई। 1929 ई. में ही एक श्रमिक विवाद अधिनियम बनाया गया। जिसके अनुसार अन्य बातों के अतिरिक्त डाक, रेलवे, पानी, बिजली संभरण जैसी सार्वजनिक उपयोगी सेवाओं में उस समय तक हड़ताल नहीं हो सकती थी जब तक कि प्रत्येक श्रमिक लिखकर एक मास की पूर्व सन्ध्या न दे दे।
1937 में 6 प्रान्तों में कांग्रेसी सरकारें बनने के उपरान्त मजदूरों के आन्दोलन को बहुत बढ़ावा मिला। इस काल में सबसे महत्वपूर्ण हड़ताल कानपुर के श्रमिकों की थी जिन्होंने 55 दिन तक हड़ताल की, जिसमें 40,000 मजदूर सम्मिलित थे। सरकार ने कानपुर श्रमिक जांच समिति नियुक्त की जिसके प्रधान बाबू राजेन्द्र प्रसाद थे। बिहार, बम्बई, यू.पी. और मध्य प्रान्त सरकारों ने भी जाँच आयोग नियुक्त किए जिन्होंने श्रमिकों के कल्याण के लिये उदारवादी सिफारिशें की। इसके फलस्वरूप बम्बई औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1988 और बम्बई दुकान सहायक अधिनियम, 1939, सी.पी, प्रसूति अधिनियम 1939 तथा बंगाल प्रसूति अधिनियम 1939 पारित किए गए।
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- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का क्या अर्थ है? सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के भौगोलिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जैवकीय कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के राजनैतिक तथा सेना सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में महापुरुषों की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रौद्योगिकीय कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विचाराधारा सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के मनोवैज्ञानिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा बताते हुए इसकी विशेषताएं लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की प्रमुख प्रक्रियायें बताइये तथा सामाजिक परिवर्तन के कारणों (कारकों) का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जैविकीय कारकों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- माल्थस के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्राकृतिक कारकों का वर्णन कीजिए। सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों व प्रणिशास्त्रीय कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राणिशास्त्रीय कारक और सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जनसंख्यात्मक कारक के महत्व की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक बताइये तथा आर्थिक कारकों के आधार पर मार्क्स के विचार प्रकट कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में आर्थिक कारकों से सम्बन्धित अन्य कारणों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक कारकों पर मार्क्स के विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिकीय कारकों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारकों का वर्णन कीजिए। सांस्कृतिक विलम्बना या पश्चायन (Cultural Lag) के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना या पश्चायन का सिद्धान्त प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में सहायक तथा अवरोधक तत्त्वों को वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में असहायक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्र एवं परिरेखा के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्रौद्योगिकी ने पारिवारिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित व परिवर्तित किया है?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में सूचना प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- निम्नलिखित पुस्तकों के लेखकों के नाम लिखिए- (अ) आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन (ब) समाज
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी एवं विकास के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सूचना तंत्र क्रान्ति के सामाजिक परिणामों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जैविकीय कारक का अर्थ बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिवर्तन में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के 'प्रौद्योगिकीय कारक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जनसंचार के प्रमुख माध्यम बताइये।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी की सामाजिक परिवर्तन में भूमिका बताइये।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी क्या है?
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास से आप क्या समझते हैं? सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक उद्विकास के कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक विकास से सम्बन्धित नीतियों का संचालन कैसे होता है?
- प्रश्न- विकास के अर्थ तथा प्रकृति को स्पष्ट कीजिए। बॉटोमोर के विचारों को लिखिये।
- प्रश्न- विकास के आर्थिक मापदण्डों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास के आयामों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति की सहायक दशाएँ कौन-कौन सी हैं?
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति के मापदण्ड क्या हैं?
- प्रश्न- निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
- प्रश्न- क्रान्ति से आप क्या समझते हैं? क्रान्ति के कारण तथा परिणामों / दुष्परिणामों की विवेचना कीजिए |
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास एवं प्रगति में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विकास के उपागम बताइए।
- प्रश्न- भारतीय समाज मे विकास की सतत् प्रक्रिया पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास क्या है?
- प्रश्न- सतत् विकास क्या है?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के रेखीय सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वेबलन के सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन क्या है? सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय तथा रेखीय सिद्धान्तों में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिये।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की आलोचना कीजिए।
- प्रश्न- अभिजात वर्ग के परिभ्रमण की अवधारणा क्या है?
- प्रश्न- विलफ्रेडे परेटो द्वारा सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- माल्थस के जनसंख्यात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक निर्णायकवादी सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का सोरोकिन का सिद्धान्त एवं उसके प्रमुख आधारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- ऑगबर्न के सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- चेतनात्मक (इन्द्रियपरक ) एवं भावात्मक ( विचारात्मक) संस्कृतियों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सैडलर के जनसंख्यात्मक सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर का प्राकृतिक प्रवरण का सिद्धान्त क्या है?
- प्रश्न- संस्कृतिकरण का अर्थ बताइये तथा संस्कृतिकरण में सहायक अवस्थाओं का वर्गीकरण कीजिए व संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण की प्रमुख विशेषतायें बताइये। संस्कृतिकरण के साधन तथा भारत में संस्कृतिकरण के कारण उत्पन्न हुए सामाजिक परिवर्तनों का वर्णन करते हुए संस्कृतिकरण की संकल्पना के दोष बताइये।
- प्रश्न- भारत में संस्कृतिकरण के कारण होने वाले परिवर्तनों के विषय में बताइये।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण की संकल्पना के दोष बताइये।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण का अर्थ एवं परिभाषायें बताइये। पश्चिमीकरण की प्रमुख विशेषता बताइये तथा पश्चिमीकरण के लक्षण व परिणामों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण के लक्षण व परिणाम बताइये।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण ने भारतीय ग्रामीण समाज के किन क्षेत्रों को प्रभावित किया है?
- प्रश्न- आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन में संस्कृतिकरण एवं पश्चिमीकरण के योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण में सहायक कारक बताइये।
- प्रश्न- समकालीन युग में संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का स्वरूप स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया के रूप में स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जातीय संरचना में परिवर्तन किस प्रकार से होता है?
- प्रश्न- स्त्रियों की स्थिति में क्या-क्या परिवर्त हुए हैं?
- प्रश्न- विवाह की संस्था में क्या परिवर्तन हुए स्पष्ट कीजिए?
- प्रश्न- परिवार की स्थिति में होने वाले परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक रीति-रिवाजों में क्या परिवर्तन हुए वर्णन कीजिए?
- प्रश्न- अन्य क्षेत्रों में होने वाले परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण के सम्बन्ध में विभिन्न समाजशास्त्रियों के विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के मार्ग में आने वाली प्रमुख बाधाओं की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण को परिभाषित करते हुए विभिन्न विद्वानों के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- डा. एम. एन. श्रीनिवास के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को बताइए।
- प्रश्न- डेनियल लर्नर के अनुसार आधुनिकीकरण की विशेषताओं को बताइए।
- प्रश्न- आइजनस्टैड के अनुसार, आधुनिकीकरण के तत्वों को समझाइये।
- प्रश्न- डा. योगेन्द्र सिंह के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को समझाइए।
- प्रश्न- ए. आर. देसाई के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण का अर्थ तथा परिभाषा बताइये? भारत में आधुनिकीकरण के लक्षण बताइये।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण के प्रमुख लक्षण बताइये।
- प्रश्न- भारतीय समाज पर आधुनिकीकरण के प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- लौकिकीकरण का अर्थ, परिभाषा व तत्व बताइये। लौकिकीकरण के कारण तथा प्रभावों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लौकिकीकरण के प्रमुख कारण बताइये।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता क्या है? धर्मनिरपेक्षता के मुख्य कारकों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- वैश्वीकरण क्या है? वैश्वीकरण की सामाजिक सांस्कृतिक प्रतिक्रिया की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत पर वैश्वीकरण और उदारीकरण के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्था पर प्रभावों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में वैश्वीकरण की कौन-कौन सी चुनौतियाँ हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित शीर्षकों पर टिप्पणी लिखिये - 1. वैश्वीकरण और कल्याणकारी राज्य, 2. वैश्वीकरण पर तर्क-वितर्क, 3. वैश्वीकरण की विशेषताएँ।
- प्रश्न- निम्नलिखित शीर्षकों पर टिप्पणी लिखिये - 1. संकीर्णता / संकीर्णीकरण / स्थानीयकरण 2. सार्वभौमिकरण।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण के कारकों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के किन्हीं दो दुष्परिणामों की विवचेना कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकता एवं आधुनिकीकरण में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- एक प्रक्रिया के रूप में आधुनिकीकरण की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण की हालवर्न तथा पाई की परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के दुष्परिणाम बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? सामाजिक आन्दोलन का अध्ययन किस-किस प्रकार से किया जा सकता है?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन का अध्ययन किस-किस प्रकार से किया जा सकता है?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के गुणों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के सामाजिक आधार की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन को परिभाषित कीजिये। भारत मे सामाजिक आन्दोलन के कारणों एवं परिणामों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- "सामाजिक आन्दोलन और सामूहिक व्यवहार" के सम्बन्धों को समझाइये |
- प्रश्न- लोकतन्त्र में सामाजिक आन्दोलन की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलनों का एक उपयुक्त वर्गीकरण प्रस्तुत करिये। इसके लिये भारत में हुए समकालीन आन्दोलनों के उदाहरण दीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के तत्व कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के विकास के चरण अथवा अवस्थाओं को बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के उत्तरदायी कारणों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के विभिन्न सिद्धान्तों का सविस्तार वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- "क्या विचारधारा किसी सामाजिक आन्दोलन का एक अत्यावश्यक अवयव है?" समझाइए।
- प्रश्न- सर्वोदय आन्दोलन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सर्वोदय का प्रारम्भ कब से हुआ?
- प्रश्न- सर्वोदय के प्रमुख तत्त्व क्या है?
- प्रश्न- भारत में नक्सली आन्दोलन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में नक्सली आन्दोलन कब प्रारम्भ हुआ? इसके स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन के प्रकोप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन की क्या-क्या माँगे हैं?
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन की विचारधारा कैसी है?
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन का नवीन प्रेरणा के स्रोत बताइये।
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन का राजनीतिक स्वरूप बताइये।
- प्रश्न- आतंकवाद के रूप में नक्सली आन्दोलन का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- "प्रतिक्रियावादी आंदोलन" से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न - रेनांसा के सामाजिक सुधार पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'सम्पूर्ण क्रान्ति' की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्रतिक्रियावादी आन्दोलन से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के संदर्भ में राजनीति की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में सरदार वल्लभ पटेल की भूमिका की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "प्रतिरोधी आन्दोलन" पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- उत्तर प्रदेश के किसी एक कृषक आन्दोलन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कृषक आन्दोलन क्या है? भारत में किसी एक कृषक आन्दोलन की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- श्रम आन्दोलन की आधुनिक प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारत में मजदूर आन्दोलन के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'दलित आन्दोलन' के बारे में अम्बेडकर के विचारों की विश्लेषणात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में दलित आन्दोलन के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारकों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- महिला आन्दोलन से क्या तात्पर्य है? भारत में महिला आन्दोलन के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारणों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- पर्यावरण संरक्षण के लिए सामाजिक आन्दोलनों पर एक लेख लिखिये।
- प्रश्न- "पर्यावरणीय आंदोलन" के सामाजिक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी कीजिये। -
- प्रश्न- कृषक आन्दोलन के प्रमुख कारणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- श्रम आन्दोलन के क्या कारण हैं?
- प्रश्न- 'दलित आन्दोलन' से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- पर्यावरणीय आन्दोलनों के सामाजिक महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- पर्यावरणीय आन्दोलन के सामाजिक प्रभाव क्या हैं?